इश्क़ वालों को फ़ुर्सत कहाँ, कि वो गम लिखेंगे;
अरे कलम इधर लेकर आओ, बेवफ़ा के बारे में हम लिखेंगे!

एक तरफ़ा प्यार अब हार रहा है;
खुश वही है जो दस जगह मुँह मार रहा है!

खुद पे वार के फेंके हैं ऐसे-वैसे बहुत;
मेरा गुरुर सलामत रहे तेरे जैसे बहुत ..!!

कितने दिलों को तोड़ती है कम्बख़्त फरवरी,
यूँ ही नहीं किसी ने इसके दिन घटाए हैं!

मिल लेंगे हम तेरे बच्चों से भी;
मगर कौन हूँ मैं, तू उन्हें क्या बताएगी?
खेलने देना तू उनको मेरे साथ;
कि माँ का खिलौना बच्चो को भी बहुत पसंद आएगा!

लोगों ने कहा धोखेबाज़ है वो, हमे लोग गलत लगे;
वो सही लगी, बाकि सारे सितम गलत लगे|
सातों जन्म के वादे थे उसके, हमने भी सच माना;
हमसे कोई अच्छा मिला, तो उसे हम गलत लगे|

अपने चहरे के किसे दाग नज़र आते हैं;
वक्त हर शख्स को आईना दिखा देता है!

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चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का; सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही!

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वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया;
जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया!

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हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद;
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है!