सच्चाई यह नहीं कि इंसान बदल जाते हैं;
सच तो यह है कि नकाब उतर जाते हैं!
दिल से रोये मगर होंठो से मुस्कुरा बैठे,
यूँ ही हम किसी से वफ़ा निभा बैठे;
वो हमें एक लम्हा न दे पाए अपने प्यार का,
और हम उनके लिये ज़िन्दगी लुटा बैठे!
बेवफाई उसकी दिल से मिटा के आया हूँ,
ख़त भी उसके पानी में बहा के आया हूँ,
कोई पढ़ न ले उस बेवफा की यादों को,
इसलिए पानी में भी आग लगा कर आया हूँ।
तुझे करनी है बेवफाई तो इस अदा से कर;
कि तेरे बाद कोई बेवफ़ा न लगे।
जाते जाते उसने पलटकर सिर्फ इतना कहा मुझसे,
मेरी बेवफाई से ही मर जाओगे या मार के जाऊं।
नाराज़गी बहुत है हम दोनों के दरमियान;
वो गलत कहता है कि कोई रिश्ता नहीं रहा!
इक उम्र से हूँ लज़्जत-ए-गिरिया से महरूम;
ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को मनाने के लिये आ!
लज़्ज़त-ए-गिरिया: रोने के सुख
महरूम: वंचित
राहत-ए-जाँ: जो जान को सुख दे, प्रियेसी
फिर निगाहों में धूल उड़ती है;
अक्स फिर आइने बदलने लगे!
रोकना मेरी हसरत थी, चले जाना उनका शौक;
वो शौक पूरा कर गए,मेरी हसरतें तोड़ कर!
तेरी राह-ए-तलब में ज़ख़्म सब सीने पे खाये हैं;
बहार-ए-ग़ुलिस्तां मेरी हयात-ए-जावेदाँ मेरी!