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मेरा बचपन भी साथ ले आया;
गाँव से जब भी आ गया कोई!

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क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में;
जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं!

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जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई;
दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई!

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लोग नज़रों को भी पढ़ लेते हैं;
अपनी आँखों को झुकाए रखना;

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दुआ को हाथ उठाते हुए लरज़ता हूँ;
कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए!

*लरज़ता: Waver, Shake, Quiver

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समेट ले गए सब रहमतें कहाँ मेहमान;
मकान काटता फिरता है मेज़बानों को!

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घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया;
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है!

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किसी को क्या ख़बर ऐ सुब्ह वक़्त-ए-शाम क्या होगा;
ख़ुदा जाने तेरे आग़ाज़ का अंजाम क्या होगा!

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दिल है क़दमों पर किसी के सिर झुका हो या न हो;
बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो!

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ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था;
हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते!

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