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जो तीर भी आता वो खाली नहीं जाता;
मायूस मेरे दिल से सवाली नहीं जाता;
काँटे ही किया करते हैं फूलों की हिफाज़त;
फूलों को बचाने कोई माली नहीं जाता।

​एक मुद्दत से मेरे हाल से बेगाना है;​
​जाने ज़ालिम ने किस बात का बुरा माना है;​
​​मैं जो जिंदगी हूँ तो वो भी हैं ​​अना का कैदी;​
​​मेरे कहने पर कहाँ उसने चले आना है।​

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​हमने ये शाम चराग़ों से सजा रक्खी है;​​
​आपके इंतजार में पलके बिछा रखी हैं;
​हवा टकरा रही है शमा से बार-बार;​​
​और हमने शर्त इन हवाओं से लगा रक्खी है।

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वो कह कर गया था मैं लौटकर आउंगा;
मैं इंतजार ना करता तो क्या करता;
वो झूठ भी बोल रहा था बड़े सलीके से;
मैं एतबार ना करता तो क्या क्या करता।

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रात बड़ी मुश्किल से खुद को सुलाया है मैंने;
अपनी आँखों को 'तेरे ख्वाब' का लालच देकर।

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जान से भी ज्यादा उन्हें प्यार किया करते थे;
याद उन्हे दिन रात किया करते थे;
अब उन राहों से गुजरा नही जाता;
जहाँ बैठ कर उनका इंतज़ार किया करते थे।

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तुम को फुर्सत जो कभी मिल जाए;
तो खुद से मुझको निजात दे देना।

कुछ रोज़ यह भी रंग रहा तेरे इंतज़ार का;
आँख उठ गई जिधर बस उधर देखते रहे।

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जो हो सके तो चले आओ आज मेरी तरफ़;
मिले भी देर हो गई और जी भी उदास है।

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अजीब सी कशिश हैं तुम में;
कि हम तुम्हारे ख्यालों में खोये रहते है;
ये सोचकर कि तुम ख्यालों में आओगे;
हम दिन रात बस सोए रहते है।

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