एक तेरा आसरा है फ़क़त ऐ ख़याल-ए-दोस्त;
सब बुझ गए चिराग़ शब-ए-इंतज़ार में!
आधी से ज़्यादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ;
अब भी अगर आ जाओ तो ये रात बड़ी है!
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा;
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा!
वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा;
तो इंतज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं!
तमाम वक़्त तुम्हीं से कलाम करते हैं;
शब-ए-फ़िराक़ का यूँ एहतिमाम करते हैं!
*कलाम- बात, बातें
आँखें सहर तलक मिरी दर से लगी रहीं;
क्या पूछते हो हाल शब-ए-इंतिज़ार का!
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी;
इंतज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे!
बेवफाओं की महफ़िल लगेगी ऐ दिल-ए-जाना;
आज ज़रा वक़्त पर आना मेहमान-ए-खास हो तुम!
हमने अक्सर तुम्हारी राहों में रुक कर अपना इंतज़ार किया!
मोहब्बत में क्या-क्या मुकाम आ रहे हैं;
कि मंज़िल पे हैं और चले जा रहे हैं!