
हम भी बरगद के दरख़्तों की तरह हैं;
जहाँ दिल लग जाए वहाँ ताउम्र खड़े रहते हैं।

कोई कब तक एक नाम दिन-रात पुकारे?
शाम उतर आई खिड़की में बिना तुम्हारे!

किसी के इंतज़ार में हमने वक़्त को खाक़ में मिला दिया;
किसी ने इंतज़ार करा कर हमको खाक़ कर दिया!

मुस्कुराते पलकों पे सनम चले आते हैं;
आप क्या जानो कहां से हमारे गम आते हैं;
आज भी उस मोड़ पर खड़े हैं;
जहां किसी ने कहा था कि ठहरो हम अभी आते हैं!

काश तकदीर भी होती जुल्फ की तरह,
जब जब बिखरती, तब तब सवार लेते!

तलाश में हूँ उसके, मगर अब तक नाकाम हूँ,
ख़ुद में ख़ुदा ढूंढना भी, गज़ब की इबादत है!

मुंतज़िर किसका हूँ टूटी हुयी दहलीज़ पर मैं;
कौन आयेगा यहाँ कौन है आनेवाला!
मुंतज़िर: इंतज़ार
दहलीज़: दहरी

दिल नाशिकेब, रूह परेशान, नज़र उदास;
ये क्या बना दिया है तिरे इंतिज़ार ने!

जहान-ए-रंग-ओ-बू में क्यों तलाश-ए-हुस्न हो मुझको;
हजारों जलवे रख्शिंदा है मेरे दिल के पर्दे में!
जहान-ए-रंग-ओ-बू = रंग और खुश्बू की दुनिया,
जलवा = नज्जारा,
दृश्य, तमाशा,
रख्शिंदा = चमकने वाले, दीप्त, प्रकाशमान

उदास आँखों में अपनी करार देखा है,
पहली बार उसे बेक़रार देखा है;
जिसे खबर ना होती थी मेरे आने-जाने की, उसकी आँखों में अब इंतज़ार देखा है!