एक बोसे के भी नसीब न हों; होंठ इतने भी अब ग़रीब न हों! *बोसे: चुम्बन
जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है, संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रखा है; उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी, नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रखा है!
हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल; ऐ ज़िंदगी वगरना ज़माने में क्या न था! *फ़क़त: केवल
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं, 'फ़राज़' अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं; जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र, कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं!
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा, मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था; न पूछ-गछ थी किसी की वहाँ न आव-भगत, तुम्हारी बज़्म में कल एहतिमाम किस का था! *बज़्म: सभा *मुश्ताक़: शौक़ रखने वाला
मैंने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी; कोई आहट न हो दर पर मेरे जब तू आए!
ग़ैरों से तो फ़ुर्सत तुम्हें दिन रात नहीं है; हाँ मेरे लिए वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं है!
इत्तेफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह; ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जगह!
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ! *ग़ाफ़िल: गहरी नींद सोने वाला
हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है; कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना! *अहवाल: परिस्थिति