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इतनी मुद्दत बाद मिले हो कुछ तो दिल का हाल कहो,
कैसे बीते हम बिन प्यारे इतने माह-ओ-साल कहो;
रूप को धोखा समझो नज़र का या फिर माया-जाल कहो,
प्रीत को दिल का रोग समझ लो या जी का जंजाल कहो!

*माह-ओ-साल: महीने और बरस

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जो कहा मैंने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर;
हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है !

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ये अदा-ए-बे-नियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक;
मगर ऐसी बे-रुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे!

*अदा-ए-बे-नियाज़ी: लापरवाही की हवा

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ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो,
ये मय है मय उसे औरों को भी पिला के पियो;
ग़म-ए-जहाँ को ग़म-ए-ज़ीस्त को भुला के पियो,
हसीन गीत मोहब्बत के गुनगुना के पियो!

*मय: शराब

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अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा;
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है!

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हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन;
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है!

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कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन,
कोई तस्वीर गाती रही रात भर;
फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले,
कोई किस्सा सुनाती रही रात भर!

*पैरहन: वस्त्र
*सबा: सुबह की हवा

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ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो;
मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी!

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बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर;
पलकों से लिख रहा था तेरा नाम चाँद पर!

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एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो;
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में,
कूच का ऐलान होने को है तैयारी रखो!