
ये कैसा नशा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ; तू आ के जा भी चुका है मैं इंतज़ार में हूँ!

हिज्र को हौसला और वस्ल को फ़ुर्सत दरकार; एक मोहब्बत के लिए एक जवानी कम है! *हिज्र: जुदाई *वस्ल: मिलन *दरकार: आवश्यकता

ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा, इस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा; जिस तरह से थोड़ी सी तेरे साथ कटी है, बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा!

समझा लिया फ़रेब से मुझ को तो आप ने; दिल से तो पूछ लीजिए क्यों बे-क़रार है!

अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ; देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ!

वो पल कि जिस में मोहब्बत जवान होती है, उस एक पल का तुझे इंतज़ार है कि नहीं; तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को, तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है कि नहीं!

गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'; क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना! *गाहे: कभी

भीड़ तन्हाइयों का मेला है; आदमी आदमी अकेला है!

किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई, सबा के पाँव थक गए मगर बहार आ गई; चमन की जश्न-गाह में उदासियाँ भी कम न थीं, जली जो कोई शम-ए-गुल कली का दिल बुझा गई!

मिट्टी ख़राब है तेरे कूचे में वर्ना हम; अब तक तो जिस ज़मीं पे रहे आसमाँ रहे!