
'मीर' अमदन भी कोई मरता है; जान है तो जहान है प्यारे।

शब को मय ख़ूब पी, सुबह को तौबा कर ली; रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई।

क़ासिद के आते आते ख़त एक और लिख रखूँ; मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में!

आईनों को ज़ंग लगा; अब मैं कैसा लगता हूँ!

हम को किस के गम ने मारा ये कहानी फिर सही; किस ने तोडा ये दिल हमारा ये कहानी फिर सही!

वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले; मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं!

एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक; जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा!

ईद का दिन है, गले आज तो मिल ले ज़ालिम; रस्म-ए-दुनिया भी है, मौक़ा भी है, दस्तूर भी है।

हसरतों का हो गया है इस क़दर दिल में हुजूम; साँस रस्ता ढूँढती है आने जाने के लिए!

चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले, आशिक़ का जनाज़ा है, ज़रा धूम से निकले।