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ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर;
आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है!

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सिर्फ़ एक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में;
मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही!

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हयात ले के चलो क़ायनात ले के चलो;
चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो!

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कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद;
याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद!

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तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूंढो;
चाहा था तुम्हें एक यही इल्ज़ाम बहुत है!

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नयी सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है;
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे!

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कब वो सुनता है कहानी मेरी;
और फिर वो भी ज़बानी मेरी!

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और कुछ तोहफ़ा न था जो लाते हम तेरे नियाज़;
एक दो आँसू थे आँखों में सो भर लाएँ हैं हम!
*नियाज़ : इच्छा, दर्शन

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इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से;
सुना है ज़िंदगी इक ख़ूबसूरत दाम है साक़ी!
*तस्दीक़: सच्चे होने की ताईद करना, सच्चा बताना

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वो क्या मंज़िल जहाँ से रास्ते आगे निकल जाएँ;
सो अब फिर एक सफ़र का सिलसिला करना पड़ेगा!

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