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दर्द का ज़ायका बताऊँ क्या;
ये इलाक़ा ज़ुबाँ से बाहर है!

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उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ;
कश्ती मेरी डुबोई है साहिल के आस-पास!
*साहिल: किनारा

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ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं,
वफ़ा-दारी का दावा क्यों करें हम;
वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत,
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम!
*इख़्लास: सच्चा और निष्कपट प्रेम

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आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो;
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो!

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दिल सा वहशी कभी क़ाबू में न आया यारो;
हार कर बैठ गए जाल बिछाने वाले!

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मुद्दतों बाद, लौटे है तेरे शहर में,
एक तुझे छोड़, कुछ भी तो नहीं बदला !

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हम तो बचपन में भी अकेले थे;
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे!

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किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे;
हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके!

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जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था,
सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है;
ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़,
वो तेरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है!

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फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है;
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो!

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