मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त;
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ!

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना;
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना!

रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब';
कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था!

दिल गया रौनक़-ए-हयात गई;
ग़म गया सारी कायनात गई!

तुम्हें बस यह बताना चाहता हूँ;
मैं तुमसे क्या छुपाना चाहता हूँ!
कभी मुझसे भी कोई झूठ बोलो;
मैं हाँ में हाँ मिलाना चाहता हूँ!
अदाकारी बड़ा दुःख दे रही है;
मैं सचमुच मुस्कुराना चाहता हूँ!
अमीरी इश्क़ की तुमको मुबारक;
मैं बस खाना कमाना चाहता हूँ!
मुझे तुमसे बिछड़ना ही पड़ेगा;
मैं तुमको याद आना चाहता हूँ!

आज फ़िर उसकी याद आ गई;
जब पान वाले ने पूछा कितना चूना लगाऊं!

दर्द जब दिल में हो तो दवा दीजिए;
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए!

गम ए दिल सुनाने को दिल चाहता है,
तुम्हे आज़माने को जी चाहता है;
सुना है कि जब से बहुत दूर हो तुम,
बहुत दूर जाने को जी चाहता है;
उन्हें हम से कोई शिकायत नही है,
यूँ ही रूठ जाने को जी चाहता है!

कोई उम्मीद बर नहीं आती,
कोई सूरत नज़र नहीं आती;
मरते हैं आरज़ू में मरने की,
मौत आती है पर नहीं आती;
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब',
शर्म तुम को मगर नहीं आती!

तेरे पास से जो गुज़रे तो जूनून में थे;
जब दूर जाके सोचा तो ज़ार-ज़ार रोये!