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आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक;
ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र,
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक!

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जिस ने कुछ एहसान किया एक बोझ सिर पर रख दिया;
सिर से तिनका क्या उतारा सिर पे छप्पर रख दिया!

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क़ुर्बतें लाख ख़ूबसूरत हों;
दूरियों में भी दिलकशी है अभी!

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होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू;
जाता कहाँ है शमा को परवाना छोड़ कर! *शमा: मोमबत्ती

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अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं;
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या!

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दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है;
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है!

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पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन;
जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है!

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कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम;
आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं!

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ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता;
अभी से लौट चलो घर अभी उजाला है!

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मुसीबत और लंबी ज़िंदगानी;
बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला!

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