सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो; सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो!
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा, कश्ती के मुसाफ़िर ने समंदर नहीं देखा; बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे, एक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा!
नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम, बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करें हम; ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी, कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम! *बरपा: होना
अब तो चुप-चाप शाम आती है; पहले चिड़ियों के शोर होते थे!
वो सादगी में भी है अजब दिलकशी लिए; इस वास्ते हम उस की तमन्ना में जी लिए!
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं, सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं; सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से, सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं! *रब्त: लगाव *ख़राब-हालों: जिनकी हालत खराब है
वो ज़हर देता तो सब की निगह में आ जाता; सो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएँ न दीं!
जब से छूटा है गुलिस्ताँ हम से; रोज़ सुनते हैं बहार आई है! *गुलिस्ताँ: फूलों का बगीचा
परेशाँ रात सारी है सितारो तुम तो सो जाओ, सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारो तुम तो सो जाओ; हँसो और हँसते हँसते डूबते जाओ ख़लाओं में, हमीं पे रात भारी है सितारो तुम तो सो जाओ! *सुकूत-ए-मर्ग: मौत की चुप्पी *ख़लाओं: आकाश
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें;
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं!
*इल्म: ज्ञान
*रिसाले: पत्रिकाओं



