हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम;
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम!
चाहिए क्या तुम्हें तोहफ़े में बता दो वर्ना;
हम तो बाज़ार के बाज़ार उठा लाएँगे!
मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले; हँसी आ रही है तेरी सादगी पर!
वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है; कि सारी बात मोहब्बत में रख-रखाव की थी!
किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें; है वस्ल से ज़्यादा मज़ा इंतज़ार का! *वस्ल: मिलन
प्यास बढ़ती जा रही है बहता दरिया देख कर; भागती जाती हैं लहरें ये तमाशा देख कर!
तेरी बख़्शिश के भरोसे पे ख़ताएँ की हैं; तेरी रहमत के सहारे ने गुनहगार किया!
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में; हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है! *तसव्वुर: कल्पना
हमें तो ख़ैर बिखरना ही था कभी न कभी; हवा-ए-ताज़ा का झोंका बहाना हो गया है!
यही है ज़िंदगी अपनी यही है बंदगी अपनी; कि उन का नाम आया और गर्दन झुक गयी अपनी!



