कभी तो दैर-ओ-हरम से तू आएगा वापस; मैं मय-कदे में तेरा इंतज़ार कर लूँगा! *मय-कदे: शराब पीने का स्थान, मदिरालय
अब आ गयी है सहर अपना घर सँभालने को; चलूँ कि जागा हुआ रात भर का मैं भी हूँ!
सब्र ऐ दिल कि ये हालत नहीं देखी जाती; ठहर ऐ दर्द कि अब ज़ब्त का यारा न रहा! *ज़ब्त: सहन
सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा; मैं बूढ़ा होता जाता हूँ जवाँ होने की ख़ातिर!
झूठ पर उस के भरोसा कर लिया; धूप इतनी थी कि साया कर लिया!
एक दो ज़ख़्म नहीं जिस्म है सारा छलनी; दर्द बे-चारा परेशान है कहाँ से निकले!
मेरा जी तो आँखों में आया ये सुनते; कि दीदार भी एक दिन आम होगा! *जी: दिल
जितनी बँटनी थी बँट चुकी ये ज़मीन; अब तो बस आसमान बाक़ी है!
मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी; तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं! *सहरा: रेगिस्तान
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए; तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए!



