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फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया;
फिर उठ खड़ा हुआ वही रोग इंतज़ार का!

*वादा-ए-वस्ल: मिलने का वादा

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अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें;
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ!

*शमएँ: मोमबत्ती

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तुम से मिलती-जुलती मैं आवाज़ कहाँ से लाऊँगा;
ताज-महल बन जाए अगर मुम्ताज़ कहाँ से लाऊँगा!

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राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह समझो मुझे;
आदमी बन जाऊँगा कुछ ठोकरें खाने के बाद!

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अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की

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कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए;
तुम्हारे नाम की एक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए!

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कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई;
दिल की दहलीज़ पे चुप-चाप खड़ा है कोई!

*सदा: आवाज़/ पुकार

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रहने दे अपनी बंदगी ज़ाहिद;
बे-मोहब्बत ख़ुदा नहीं मिलता!

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वो पूछता था मेरी आँख भीगने का सबब;
मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया!

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उल्फ़त का है मज़ा कि 'असर' ग़म भी साथ हों;
तारीकियाँ भी साथ रहें रौशनी के साथ!

*तारीकियाँ: अंधेरा

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