मेरी रुस्वाई के अस्बाब हैं मेरे अंदर; आदमी हूँ सो बहुत ख़्वाब हैं मेरे अंदर! *रुस्वाई: बदनामी *अस्बाब: कारण, हालात
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था; तालों की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था!
वो नहीं भूलता जहाँ जाऊँ; हाए मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ!
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता; अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता!
हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं; एक दूजे को वक़्त नहीं दे पाते हैं!
तन्हाई का एक और मज़ा लूट रहा हूँ; मेहमान मेरे घर में बहुत आए हुए हैं!
बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है; उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है!
बिन तुम्हारे कभी नहीं आई; क्या मेरी नींद भी तुम्हारी है!
ये ग़म नहीं है कि हम दोनों एक हो न सके; ये रंज है कि कोई दरमियान में भी न था!
गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काँटों से भी ज़ीनत होती है; जीने के लिए इस दुनिया में ग़म की भी ज़रूरत होती है! *फ़क़त: केवल *ज़ीनत: सजावट



