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भोली बातों पे तेरी दिल को यकीन;
पहले आता था अब नहीं आता!

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तेरा दीदार हो हसरत बहुत है;
चलो कि नींद भी आने लगी है!

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ख़्वाब होते हैं देखने के लिए;
उन में जा कर मगर रहा न करो!

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मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का;
मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है!

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बहारों की नज़र में फूल और काँटे बराबर हैं;
मोहब्बत क्या करेंगे दोस्त दुश्मन देखने वाले!

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वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सत;
हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है!

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अभी से पाँव के छाले न देखो;
अभी यारो सफ़र की इब्तिदा है!

*इब्तिदा: शुरुआत

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उस की आँखों को ग़ौर से देखो;
मंदिरों में चिराग़ जलते हैं!

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दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका;
कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूँ!

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मेरे अंदर कई एहसास पत्थर हो रहे हैं;
ये शीराज़ा बिखरना अब ज़रूरी हो गया है!

*शीराज़ा: बिखरी हुई चीज़ों की एकत्रता

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