मेरी ज़ुबान के मौसम बदलते रहते हैं; मैं आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना!
न वो सूरत दिखाते हैं न मिलते हैं गले आकर; न आँखें शाद होतीं हैं न दिल मसरूर होता है! *शाद: ख़ुश
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा;
कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा!
मेरे गुनाह ज़्यादा हैं या तेरी रहमत;
करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे!
तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है;
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है!
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'; मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया!
पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी; साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में! *तिश्नगी: प्यास
आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे; तितलियाँ मंडरा रही हैं काँच के गुल-दान पर!
अगर ऐ नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है; इधर कश्ती न ले आना यहाँ पानी बहुत कम है!
हम ने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर; लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं!



