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दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से;
इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से!

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आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है;
बेवफ़ाई कभी कभी करना!

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ख़्वाहिशों ने डुबो दिया दिल को;
वर्ना ये बहर-ए-बे-कराँ होता!

*बहर-ए-बे-कराँ: बिना किनारे का समुद्र

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जान-लेवा थीं ख़्वाहिशें वर्ना;
वस्ल से इंतज़ार अच्छा था!

*वस्ल: मिलन

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लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे;
जी चाहता है मैं तेरी आवाज़ चूम लूँ!

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हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यों हो;
ये भी इक बे-ख़बरी है कि ख़बर रखते हैं!

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जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए;
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया!

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मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में;
क्यों तेरी याद का बादल मेरे सिर पर आया!

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अगर बदल न दिया आदमी ने दुनिया को;
तो जान लो कि यहाँ आदमी की ख़ैर नहीं!

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पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है;
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है!

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