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दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़;
अब के बादल ने बहुत की मेहरबानी हर तरफ़!

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एक हसीन आँख के इशारे पर;
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं!

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और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी;
हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं!

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कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है;
कभी महफ़ूज़ कश्ती में सफ़र करने से डरता हूँ!

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दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते; अब कोई शिकवा हम नहीं करते!

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उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी; ख़मोशी से गुज़र जाऊँगा मैं भी!

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झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए;
और मैं था कि सच बोलता रह गया!

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ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा;
जा चुकी है बहार चुप हो जा!

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शायरी झूठ सही इश्क़ फ़साना ही सही;
ज़िंदा रहने के लिए कोई बहाना ही सही!

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ये सुब्ह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ;
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया!

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