एक ऐसा भी वक़्त होता है; मुस्कुराहट भी आह होती है!
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में; फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते!
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम; जब धूप में साया कोई सिर पर न मिलेगा!
पहाड़ काटने वाले ज़मीन से हार गए; इसी ज़मीन में दरिया समाए हैं क्या क्या!
मानी हैं मैंने सैकड़ों बातें तमाम उम्र; आज आप एक बात मेरी मान जाइए!
सो देख कर तेरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया; कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी!
बताऊँ किस हवाले से उन्हें बैराग का मतलब; जो तारे पूछते हैं रात को घर क्यों नहीं जाता!
भोले बन कर हाल न पूछ बहते हैं अश्क तो बहने दो; जिस से बढ़े बेचैनी दिल की ऐसी तसल्ली रहने दो!
वो चेहरा किताबी रहा सामने; बड़ी ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई!
जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर; हर सुब्ह एक अज़ाब है अख़बार देखना!



