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पहले इसमें एक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था;
रूठना अब तो तेरी आदत में शामिल हो गया!

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आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब;
वो अलग बाँध के रखा है जो माल अच्छा है!

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तुम अपने चाँद तारे कहकशाँ चाहे जिसे देना;
मेरी आँखों पे अपनी दीद की इक शाम लिख देना!

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आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह;
उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी!

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आई होगी किसी को हिज्र में मौत;
मुझ को तो नींद भी नहीं आती!

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उस गली ने ये सुन के सब्र किया;
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं!

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नशा था ज़िंदगी का शराबों से तेज़-तर;
हम गिर पड़े तो मौत उठा ले गई हमें!

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ज़ाहिर की आँख से न तमाशा करे कोई;
हो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई!

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न जाने कौन सी मंज़िल पे इश्क़ आ पहुँचा;
दुआ भी काम न आए कोई दवा न लगे!

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रोते जो आए थे रुला के गए;
इब्तिदा इंतेहा को रोते हैं!

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