ख़ुश-गुमाँ हर आसरा बे-आसरा साबित हुआ; ज़िंदगी तुझ से तालुक्क खोखला साबित हुआ!
जवाज़ कोई अगर मेरी बंदगी का नहीं; मैं पूछता हूँ तुझे क्या मिला ख़ुदा हो कर! * जवाज़: जाइज़ होना
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'; तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई!
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था; जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा!
दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को; और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूँ मैं!
क्यों चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो; तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो!
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं; ज़िंदगी तूने तो धोखे पे दिया है धोखा!
अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है; कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है!
हमारे इश्क़ में रुस्वा हुए तुम; मगर हम तो तमाशा हो गए हैं!
आसमानों से फ़रिश्ते जो उतारे जाएँ; वो भी इस दौर में सच बोलें तो मारे जाएँ!



