इस तरफ़ से गुज़रे थे क़ाफ़िले बहारों के; आज तक सुलगते हैं ज़ख़्म रहगुज़ारों के!
क्या सितम है कि अब तेरी सूरत; ग़ौर करने पे याद आती है!
वो जो प्यासा लगता था सैलाब-ज़दा था; पानी पानी कहते कहते डूब गया है!
रोज़ दीवार में चुन देता हूँ मैं अपनी अना; रोज़ वो तोड़ के दीवार निकल आती है! *अना: मैं, अहम
आप की याद आती रही रात भर; चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर!
मेरी तरफ़ से तो टूटा नहीं कोई रिश्ता; किसी ने तोड़ दिया ऐतबार टूट गया!
साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद; मुझ को तेरी निग़ाह का इल्ज़ाम चाहिए!
बड़े सीधे-साधे बड़े भोले-भाले; कोई देखे इस वक़्त चेहरा तुम्हारा!
मरते हैं आरज़ू में मरने की; मौत आती है पर नहीं आती!
आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम; उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब में!



