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यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता;
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो!

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खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही;
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है!

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मैं क्या करूँ मेरे क़ातिल न चाहने पर भी,
तेरे लिए मेरे दिल से दुआ निकलती है!

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कौन बदन से आगे देखे औरत को;
सब की आँखें गिरवी हैं इस नगरी में!

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मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम;
मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है!

*पैहम: लगातार

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इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब;
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम!

*फ़राग़त: आराम

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शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए;
हम उसी आग में गुम-नाम से जल जाते हैं!

*शमा: मोमबत्ती

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अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया;
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया!

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ऐ सनम जिसने तुझे चाँद सी सूरत दी है;
उसी अल्लाह ने मुझ को भी मोहब्बत दी है!

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एक मंज़िल है मगर राह कई हैं 'अज़हर';
सोचना ये है कि जाओगे किधर से पहले!

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