कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है; ज़िंदगी एक नज़्म लगती है! *नज़्म: कविता
बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी; बादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी!
किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती; है यही एक ख़राबी मेरी तन्हाई की!
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया; झूठी क़सम से आप का ईमान तो गया!
सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर; अब किसे रात भर जगाती है!
हैरान मत हो तैरती मछली को देख कर; पानी में रौशनी को उतरते हुए भी देख!
ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ; काश तुझ को भी इक झलक देखूँ!
मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल; हैरत में हूँ ये किस का मुझे इंतज़ार है!
दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगह; आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के!
ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे; सो जाए भी तो पहर दो पहर को जाता है!



