तोड़ कर आज ग़लत-फ़हमी की दीवारों को; दोस्तो अपने ताल्लुक को सँवारा जाए! * ताल्लुक : संबंध
मेरा बचपन भी साथ ले आया; गाँव से जब भी आ गया कोई!
काफ़ी है मेरे दिल की तसल्ली को यही बात; आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया!
मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ; मुझे किसी पे भी अब कोई ऐतबार नहीं!
किसी कली किसी गुल में किसी चमन में नहीं; वो रंग है ही नहीं जो तेरे बदन में नहीं!
वस्ल में रंग उड़ गया मेरा; क्या जुदाई को मुँह दिखाऊँगा! *वस्ल: मिलन
इश्क़ में कुछ नज़र नहीं आया; जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है!
अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को; मैंने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं!
ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है; दर्द दिल का लिबास होता है!
क्यों न अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे इतराती हवा; फूल जैसे एक बदन को छू कर आई थी हवा!



