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इस भरोसे पे कर रहा हूँ गुनाह;
बख़्श देना तो तेरी फ़ितरत है!

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ज़ुबान दिल की हक़ीक़त को क्या बयाँ करती;
किसी का हाल किसी से कहा नहीं जाता!

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इश्क़ को एक उम्र चाहिए और;
उम्र का कोई ऐतबार नहीं!

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ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो;
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें!

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घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया;
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है!

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जिस तरफ़ तू है उधर होंगी सभी की नज़रें;
ईद के चाँद का दीदार बहाना ही सही!

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अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ;
शाम आ गयी है लौट के घर जाएँ हम तो क्या!

* मुंतज़िर: Expectant, One who waits

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मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो 'ज़फ़र';
साफ़ पहचान लिया जाता हूँ रोया हुआ मैं!

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दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से;
कमरा वीरान हो जाता है एक तस्वीर हटा देने से!

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किसी को क्या ख़बर ऐ सुब्ह वक़्त-ए-शाम क्या होगा;
ख़ुदा जाने तेरे आग़ाज़ का अंजाम क्या होगा!

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