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दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे;
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे!

*रंज: दुख

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इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का;
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम!

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जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश है;
जब याद हम आ जाएँ मिलने की दुआ करना!

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मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं;
फिर उस के बाद गहरी नींद सोना चाहता हूँ मैं!

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इलाही कैसी कैसी सूरतें तूने बनाई हैं;
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है!

* इलाही: ख़ुदा

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क्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता है;
अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है!

*हिज्र: जुदाई, वियोग, विछोह, विरह

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हमारे पेश-ए-नज़र मंज़िलें कुछ और भी थीं;
ये हादसा है कि हम तेरे पास आ पहुँचे!

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आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो;
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो!

* महताब: चाँद

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आदतन तुम ने कर दिए वादे;
आदतन हम ने ए'तिबार किया!

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हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं;
तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं!

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