ज़हर मीठा हो तो पीने में मज़ा आता है;
बात सच कहिए मगर यूँ कि हक़ीक़त न लगे!
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं;
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं!
तुम परिंदों से ज़्यादा तो नहीं हो आज़ाद;
शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो!
सर्दी में दिन सर्द मिला;
हर मौसम बेदर्द मिला!
यक़ीन बरसों का इम्कान कुछ दिनों का हूँ;
मैं तेरे शहर में मेहमान कुछ दिनों का हूँ!
*इम्कान: Possibility, Contingent, Existence
एक रात वो गया था जहाँ बात रोक के;
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के!
अंजाम को पहुँचूंगा मैं अंजाम से पहले;
ख़ुद मेरी कहानी भी सुनाएगा कोई और!
ये कैसा नशा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ;
तू आ के जा भी चुका है मैं इंतज़ार में हूँ!
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी;
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे!
इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ;
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है!
*कहकशाँ: आकाशगंगा, छायापथ



