हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी;
ख़ुदा करे कि जवानी तेरी रहे बे-दाग़!
एक तेरा आसरा है फ़क़त ऐ ख़याल-ए-दोस्त;
सब बुझ गए चिराग़ शब-ए-इंतज़ार में!
हसीन तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा;
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे!
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत;
हम जहान में तेरी तस्वीर लिए फिरते हैं!
तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो;
मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो!
*हिज्र- जुदाई, वियोग, विछोह, विरह
इन चिराग़ों में तेल ही कम था;
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे!
ख़ुश्बू को फैलने का बहुत शौंक है मगर;
मुमकिन नहीं हवाओं से रिश्ता किए बग़ैर!
आधी से ज़्यादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ;
अब भी अगर आ जाओ तो ये रात बड़ी है!
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उठें;
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं!
*बर्क: बिजली
जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं;
वही दुनिया बदलते जा रहे हैं!



