हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ;
शीशे के महल बना रहा हूँ!
ज़िंदगी एक हादसा है और कैसा हादसा;
मौत से भी ख़त्म जिस का सिलसिला होता नहीं!
ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़;
मुझ को आदत है मुस्कुराने की!
कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन;
जब तक उलझे न काँटों से दामन!
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा;
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा!
घूम रहा हूँ तेरे ख़्यालों में;
तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है!
तिनकों से खेलते ही रहे आशियाँ में हम;
आया भी और गया भी ज़माना बहार का!
आते आते मेरा नाम सा रह गया;
उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया!
कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँ ही आँखें;
उदास होने का कोई सबब नहीं होता!
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है;
तुम ने देखा नहीं आँखों का समंदर होना!



