इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद;
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता!
एक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है;
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है!
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से;
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से!
एक एक बात में सच्चाई है उस की लेकिन;
अपने वादों से मुकर जाने को जी चाहता है!
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ;
अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गयी आई गई!
मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें;
ये लीजिये आप का घर आ गया है हाथ छोड़ें!
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं;
हाँ मुझ ही को ख़राब होना था!
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो;
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो!
नहीं आती तो याद उनकी महीनों तक नहीं आती;
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं!
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा;
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं!



