सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है;
हँसता चेहरा एक बहाना लगता है!
तू सामने है तो फिर क्यों यक़ीं नहीं आता;
ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं!
ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को;
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं!
सब कुछ हम उन से कह गए लेकिन ये इत्तेफ़ाक़;
कहने की थी जो बात वही दिल में रह गई!
एक मुद्दत से तेरी याद भी आयी न हमें;
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं!
मुझे अब तुम से डर लगने लगा है;
तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या!
मेरे ख़ुदा मुझे इतना तो मोतबर कर दे;
मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे!
हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल;
उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती!
*शहरियत: सभ्यता, शिष्टता, नागरिकता।
एक अजब हाल है कि अब उस को;
याद करना भी बेवफ़ाई है!
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की;
मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई!



