वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा;
तो इंतज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं!
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब;
आज तुम याद बे-हिसाब आए!
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर;
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए!
कोई मंज़िल के क़रीब आ के भटक जाता है;
कोई मंज़िल पे पहुँचता है भटक जाने से!
जिन्हें हम देख कर जीते थे 'नासिर';
वो लोग आँखों से ओझल हो गए हैं!
मुझ में सात समुंदर शोर मचाते हैं;
एक ख़याल ने दहशत फैला रखी है!
जो गुज़ारी न जा सकी हम से;
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है!
मौत का भी इलाज हो शायद;
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं!
मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है;
मगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है!
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं;
दिल हमेशा उदास रहता है!



