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लो फिर तेरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र;
अहमद 'फ़राज़' तुझ से कहा न बहुत हुआ!

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है मेरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं;
उस परी का सेहर यारो कुछ कहा जाता नहीं!

* सेहर - सम्मोहन, जादू

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नहीं नहीं हमें अब तेरी जुस्तुजू भी नहीं;
तुझे भी भूल गए हम तेरी ख़ुशी के लिए!

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हम कहीं भी हों मगर ये छुट्टियाँ रह जाएँगी;
फूल सब ले जाएँगे पर पत्तियाँ रह जाएँगी!

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हमेशा पूछती रहती है रास्तों की हवा;
यूँ ही रुके हो यहाँ या किसी ने रोका था!

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आँख पर-नमी मगर मुस्कुराहट मेरी;
कह रही थी कहानी मेरे इश्क़ की!

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हम से क्या हो सका मोहब्बत में;
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की!

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आज उस ने हँस के यूँ पूछा मिज़ाज;
उम्र भर के रंज-ओ-ग़म याद आ गए!

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अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फैंसला;
जिस दिये में जान होगी वो दिया रह जायेगा!

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अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ;
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ!

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