फिर ये किस ने मुझे जगाया है;
फिर से ख़्वाबों में कौन आया है!
तुम्हीं बताओ कि अब और तुम से क्या माँगूँ;
ये दर्द-ए-दिल जो दिया है मुझे वो क्या कम है!
जाने क्या सोच के हम तुझ से वफ़ा करते हैं;
क़र्ज़ है पिछले जन्म का सो अदा करते हैं!
दिल पे जज़्बों का राज है साहब;
इश्क़ अपना मिज़ाज है साहब!
तमाम वक़्त तुम्हीं से कलाम करते हैं;
शब-ए-फ़िराक़ का यूँ एहतिमाम करते हैं!
*कलाम- बात, बातें
रौशनी को तीरगी का क़हर बन कर ले गया;
आँख में महफ़ूज़ थे जितने भी मंज़र ले गया! * तीरगी- अँधेरा
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए;
इस के बा'द आए जो अज़ाब आए!
*अब्र- मेघ, बादल
अभी हिज्र दामन में उतरा नहीं है;
मगर वस्ल का भी तो चर्चा नहीं है!
*हिज्र- जुदाई
ना मेरी ज़ख़्म पर रखो मरहम;
मेरे क़ातिल की ये निशानी है!
तन्हाई की आग़ोश में था सुबह से पहले;
मिलती रही उल्फ़त की सज़ा सुबह से पहले!



