कितना दुश्वार है जज़्बों की तिजारत करना;
एक ही शख़्स से दो बार मोहब्बत करना!
*दुश्वार-कठिन
तुम ख़फ़ा हो के हम को छोड़ चले;
अब अजल से है सामना अपना!
इस तअल्लुक़ को तू रस्ते की रुकावट न समझ;
अब किसी और का होना है तो चल जा हो जा!
उस की सूरत का तसव्वुर दिल में जब लाते हैं हम;
ख़ुद-ब-ख़ुद अपने से हमदम आप घबराते हैं हम!
तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़;
किस से किस का गिला करे कोई!
ख़ुदा उसे भी किसी दिन ज़वाल देता है;
ज़माना जिस के हुनर की मिसाल देता है!
* ज़वाल - पतन
जब मोहब्बत का किसी शय पे असर हो जाए;
एक वीरान मकाँ बोलता घर हो जाए!
दौर काग़जी था पर देर तक ख़तों में जज़्बात महफ़ूज़ रहते थे;
अब मशीनी दौर है उम्र भर की यादें ऊँगली से ही डिलीट हो जाती हैं।
जो चाहते हो सो कहते हो चुप रहने की लज़्ज़त क्या जानो;
ये राज़-ए-मोहब्बत है प्यारे तुम राज़-ए-मोहब्बत क्या जानो!
धूप बढ़ते ही जुदा हो जाएगा;
साया-ए-दीवार भी दीवार से!



