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हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है,
दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है;
करते हैं जिस पे तान कोई जुर्म तो नहीं,
शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ उल्फ़त-ए-नाकाम ही तो है!

*इकराम: इनाम
*दुश्नाम: अपशब्द

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जाने किन रिश्तों ने मुझ को बाँध रखा है कि मैं;
मुद्दतों से आँधियों की ज़द में हूँ बिखरा नहीं!

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कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे;
हर ज़माने में शहादत के यही अस्बाब थे!

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सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है,
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है;
मैं तेरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ,
कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है!

*बा-वज़ू: शुद्ध और स्वच्छ

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शुक्रिया ऐ क़ब्र तक पहुँचाने वालो शुक्रिया;
अब अकेले ही चले जाएँगे इस मंज़िल से हम!

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एक हक़ीक़त हूँ अगर इज़हार हो जाऊँगा मैं;
जाने किस किस जुर्म का इक़रार हो जाऊँगा मैं!

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हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए,
हम हँस दिए हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तेरा;
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें,
हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तेरा!

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दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से;
इस घर को आग लग गई घर के चिराग से!

*फफूले: छाले

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मिल रही हो बड़े तपाक के साथ;
मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या!

*तपाक: जोश
*यकसर: बिलकुल

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इन्हीं सिफ़ात से होता है आदमी मशहूर,
जो लुत्फ़ आम वो करते ये नाम किस का था;
हर एक से कहते हैं क्या 'दाग़' बेवफ़ा निकला,
ये पूछे उन से कोई वो ग़ुलाम किस का था!

*सिफ़ात: खूबी
*लुत्फ़: कृपा

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