खिड़की से महताब न देखो;
ऐसे भी तुम ख़्वाब न देखो!
दिल से जब लौ लगी नहीं होती;
आँख भी शबनमी नहीं होती!
ख़ुश हूँ कब दिल की दास्ताँ कह कर;
क्या मिलेगा यहाँ वहाँ कह कर!
बे-ज़मीरों के कभी झांसे में मैं आता नहीं;
मुश्किलों की भीड़ से हरगिज़ मैं घबराता नहीं!
आज किसी की याद में हम जी भर कर रोए धोया घर;
आज हमारा घर लगता है कैसा उजला उजला घर!
आँखों में सितारे रहने दे;
जीने के सहारे रहने दे!
चैन पड़ता नहीं है सोने में;
सूइयाँ तो नहीं बिछौने में!
तेरी आँखें ने रहीं आईना-खाना मिरे दोस्त;
कितनी तेजी से बदलता है ज़माना मिरे दोस्त!
इंतिज़ार-ए-दीद में यूँ आँख पथराई कि बस;
मरते मरते वो हुई आलम में रुस्वाई कि बस!
फूल हँसे और शबनम रोई आई सबा मुस्काई धूप;
याद का सूरज ज़ेहन में चमका पलकों पर लहराई धूप!



