ना वक्त इतना हैं कि सिलेबस पूरा हो;
ना चिराग का जिन है जो परीक्षा सफल कराये;
ना जाने कौन सा दर्द दिया है इस पढ़ाई ने;
ना रोया जाय और ना सोया जाए।

पप्पू आईने के सामने पढ़ाई करना पसंद करता है क्योंकि:
1. दोहराने का समय बचता है।
2. संयुक्त पढ़ाई होती है।
3. एक दूसरे के संदेह साफ़ हो जाते हैं।
4. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रतियोगिता का महौल बना रहता है।

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हम जीते एक बार हैं;
और मरते एक बार हैं;
प्यार भी एक बार करते हैं;
और शादी भी एक बार करते हैं;
तो फिर ये एग्जाम बार बार क्यों आते हैं।
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"जागो बच्चों जागो।"

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लिखो तो एग्जाम में कुछ ऐसा लिखो;
कि पेन भी रोने पर मजबूर हो जाये;
हर उत्तर में वो दर्द भर दो;
कि चेक करने वाला 'डिस्प्रिन' खा के सो जाये।

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जोर का झटका हाय जोरों से लगा;
पढ़ाई बन गई उम्र कैद की सजा;
ये है उदासी जान की प्यासी;
एग्जाम से अच्छा तुम दे दो फांसी।

माँ ने अपने बच्चे से पूछा, "तुम सारा साल क्यों नहीं पढ़ते, सिर्फ इम्तिहानों के दिनों में ही क्यों पढ़ते हो?"
बच्चा: माँ, लहरों का सकून तो सभी को पसंद है। लेकिन तूफानों में कश्ती निकालने का मज़ा ही कुछ और है।

अगर प्रशन पेपर मुश्किल लगे, या समझ में ना आये तो एक गहरी सांस लो और जोर से चिल्लाओ,
"कमीनों, फेल ही करना है तो
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. .
. . .
इम्तेहान क्यों लेते हो?"

कह दो पढ़ने वालों से कभी हम भी पढ़ा करते थे;
जितने पाठ पढ़कर वो टॉप किया करते हैं;
उतने पाठ तो हम छोड़ दिया करते थे।

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ले गए आप इस स्कूल को उस मुकाम पर,
गर्व से उठते है हमारे सर,
हम रहे न रहे अब कल,
याद आयेंगे आप के साथ बिताये हुए पल,
टीचर... आपकी ज़रूरत रहेगी हमें हर पल!

गल्तियाँ करो - खूब करो;
सौ बार नहीं, हज़ार बार करो!
बस इतना ध्यान रखो, कि एक गलती दोबारा मत करो;
वो है, 'स्कूल' जाने की!

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