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मौसम के भी अपने नखरे हैं।
पद्मावती के चक्कर में 4 दिन किसी दिन ने ध्यान नहीं दिया तो दिल्ली का स्मोग अपने आप ठीक हो गया।

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रोज नहातम देह घिसतम
अर्थात...
रोज नहाने से शरीर घिस जाता है!

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मुँह से धुआं निकलने वाली ठण्ड, पता नहीं कब पड़ेगी।

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जब वैसलीन की एडवरटाइज़मेंट आने लगेंगे,
तब मैं मानूँगा कि ठंड आ गयी!

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सर्दियों में हाथ मिलाने की बजाय राम-राम का उपयोग ज़्यादा करें!
हो सकता है सामने वाले ने नाक साफ़ करके हाथ ना धोए हों!

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आज मैंने स्वेटर पहन लिया,
क्या समाज मुझे स्वीकार करेगा!

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अब तो दीपावली भी देख ली.... कब जाओगी गर्मी!

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हे प्रभु बारिश करवा रहे हो या बॉडी स्प्रे मार रहे हो?
वहाँ ऊपर भी Fogg चल रहा है क्या?

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कुछ तो पढ़ी लिखी होगी ये गर्मी वरना इतनी डिग्री लेकर कौन घूमता है।

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गर्मी का आलम ये है कि मिट्टी का मटका भी आधा पानी गर्मी मारे खुद पी जाता है।