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हर सफर की मंजिल हो ये जरूरी तो नहीं;
कुछ रास्ते एक मोड़ पर खत्म होते देखे हैं मैंने!

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गलतियों से जुदा तु भी नहीं, मैं भी नहीं;
दोनों इंसान हैं, ख़ुदा तु भी नहीं, मैं भी नहीं;
गलतफहमियों ने कर दी दोनों में पैदा दूरियां;
वरना फितरत का बुरा तु भी नहीं था, मैं भी नहीं।

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कैसी अजीब तुझसे यह जुदाई थी,
कि तुझे अलविदा भी ना कह सका;
तेरी सादगी में इतना फरेब था,
कि तुझे बेवफा भी ना कहा सका।

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भूल जाने का हौसला ना हुआ;
दूर रह कर भी वो जुदा ना हुआ;
उनसे मिल कर किसी और से क्या मिलते;
कोई दूसरा उनके जैसा ना हुआ।

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ज़ुबान खामोश आँखों में नमी होगी;
ये बस एक दास्तां-ए ज़िंदगी होगी;
भरने को तो हर ज़ख्म भर जाएगा;
कैसे भरेगी वो जगह जहाँ तेरी कमी होगी।

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हो जुदाई का सबब कुछ भी मगर;
हम उसे अपनी खता कहते हैं;
वो तो साँसों में बसी है मेरे;
जाने क्यों लोग उसे मुझे जुदा कहते हैं।

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आज कुछ कमी सी है तेरे बगैर;
ना रंग ना रौशनी है तेरे बगैर;
वक़्त अपनी रफ़्तार से चल रहा है;
बस धड़कन थम सी गयी है तेरे बगैर।

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दिल की धड़कन को, एक लम्हा सबर नहीं;
शायद उसको अब मेरी ज़रा भी कदर नहीं;
हर सफर में मेरा कभी हमसफ़र था वो;
अब सफर तो है मगर वो हमसफ़र नहीं।

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कुछ बिखरे सपने और आँखों में नमी है;
एक छोटा सा आसमान और उमीदों की ज़मीं है;
यूँ तो बहुत कुछ है ज़िंदगी में;
बस जिसे चाहते हैं उसी की कमी है।

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तुझसे दूर अब हम जा नहीं सकते;
तुझसे प्यार कितना है यह हम बता नहीं सकते;
हमें मालूम है ये ज़िन्दगी है चार दिन की लेकिन;
तेरे बिन ये चार दिन तो क्या दो पल भी हम बिता नहीं सकते।