बदन पे जिस के शराफ़त: बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा, वो आदमी भी यहाँ हम ने बद-चलन देखा; ख़रीदने को जिसे कम थी दौलत-ए-दुनिया, किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा; मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी, कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा; बड़ा न छोटा कोई फ़र्क़ बस नज़र का है, सभी पे चलते समय एक सा कफ़न देखा; ज़ुबाँ है और बयाँ और उस का मतलब और, अजीब आज की दुनिया का व्याकरन देखा; लुटेरे डाकू भी अपने पे नाज़ करने लगे, उन्होंने आज जो संतों का आचरन देखा; जो सादगी है कुहन में हमारे में, किसी पे और भी क्या ऐसा बाँकपन देखा! |
रवा होते-होते एक दिन: रवा होते-होते एक दिन रवा हो जायेगी, यादें रह जायेंगीं, जिंदगी हवा हो जायेगी; परवान तो चढने दो, गम को उरूज तक, दर्द ही दर्द की, देखना, दवा हो जायेगी; तुम हर रोज मिलना मुझे, घुंघट में से झांकते, पुराने जमाने की, ये नयी अदा हो जायेगी; जरूरी है फांसले मोहब्बत की रस्मों-रिवाज में वरना, हमसे खता हो जायेगी या तुमसे खता हो जायेगी; खूबाँ को देखकर, कहते हैं, बस में ठसे हुए मर्द, दिल में जगाह चाहिए, बैठने को भी जगाह हो जायेगी। |
आँखें शराब: आँखें शराब खाना, दिल हो गया दीवाना; नजरों के तीर खा कर, घायल हुआ जमाना; भटकेंगी ये तो दर-दर, नजरों का क्या ठिकाना; नजरों की कदर करना, नजरों से ना गिराना; नज़रों की आब, इज्जत, इस को सदा बढ़ाना; शर्म-ओ-हया का जेवर, नज़रों का है खज़ाना; नज़रों के दायरे में, गैरों को ना बसाना; नज़रों में बंद रखना, तुम राज-ए-दिल छुपाना! |
ज़ख़्मी दिन और रात रहेंगे: ज़ख़्मी दिन और रात रहेंगे कितने दिन, दहशत में लम्हात रहेंगे कितने दिन; हर पतझड़ के बाद है मौसम फूलों का, ख़ाली अपने हाथ रहेंगे कितने दिन; कितनी साँसे किस के पास हैं क्या मालूम, हम तुम दोनों साथ रहेंगे कितने दिन; पढ़ने वाले चेहरा भी पढ़ लेते हैं, पोशीदा हालात रहेंगे कितने दिन; कितने दिन तक वो दिन अपने साथ रहे, ये दिन अपने साथ रहेंगे कितने-कितने दिन! |
इक बेवफ़ा में रुह-ए-वफ़ा ढूंढ़ते रहे: इक बेवफ़ा में रुह-ए-वफ़ा ढूंढ़ते रहे, शोलों की बारिशों में सबा ढूंढ़ते रहे; वो ढूंढ़ते हैं दिल को दुखाने का सिलसिला, उनकी ख़ुशी में हम तो मज़ा ढूंढ़ते रहे; वो हैं कि मुस्कुरा रहे हैं चीर के जिगर, हम हैं कि यार खुद की ख़ता ढूंढ़ते रहे; घबरा के देखते कभी आकाश की तरफ, रुख़सत हुई ख़ुशी का पता ढूंढ़ते रहे; ठहरी हुई नदी में भरे जो रवानगी, शिद्दत से रात दिन वो अदा ढूंढ़ते रहे। |
गम-ए-ज़ज़्बात से घायल: गम-ए-ज़ज़्बात से घायल, कोई दामन न रह जाये, बिना खुशियों की फुलवारी के कोई आंगन न रह जाये; बजाओ इस तरह की धुन, कि हर गैरत के सीने में, लरजते आंसुओं का शेष कोई सावन न रह जाये; खताओं के समंदर में न ढूंढो सत्य का मोती, कहीं जीवन चमन का घट अपावन न रह जाये; मुक्ति की राह में भक्ति के खंजर इस तरह मारो, किसी भी शख्स के दुर्व्यसन का साधन न रह जाये; जलाओ इस तरह से दीप हर जीवन के दरवाजे पे, उजाले से महरूम, कोई आंगन न रह जाये। |
सारी बस्ती में ये जादू नज़र आए मुझको: सारी बस्ती में ये जादू नज़र आए मुझको, जो दरीचा भी खुले तू नज़र आए मुझको; सदियों का रत जगा मेरी रातों में आ गया, मैं एक हसीन शख्स की बातों में आ गया; जब तस्सवुर मेरा चुपके से तुझे छू आए, देर तक अपने बदन से तेरी खुशबू आए; गुस्ताख हवाओं की शिकायत न किया कर, उड़ जाए दुपट्टा तो खनक औढ लिया कर; तुम पूछो और में न बताउ ऐसे तो हालात नहीं, एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं; रात के सन्नाटे में हमने क्या-क्या धोके खाए है, अपना ही जब दिल धड़का तो हम समझे वो आए है! |
मोम के पास कभी: मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ, सोचता हूँ कि तुझे हाथ लगा कर देखूँ; कभी चुपके से चला आऊँ तेरी खिलवत में, और तुझे तेरी निगाहों से बचा कर देखूँ; मैंने देखा है ज़माने को शराब पी कर, दम निकल जाये अगर होश में आकर देखूँ; दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है, सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगा कर देखूँ; तेरे बारे में सुना ये है कि तू सूरज है, मैं ज़रा थोड़ी देर तेरे साये में आ कर देखूँ; याद आता है कि पहले भी कई बार यूँ ही, मैंने सोचा था कि मैं तुझको भुला कर देखूँ। |
हर एक चश्म में जैसे कि एक जहां गुम है, हर एक दिल में लगे एक दास्तां गुम है; कहीं तलाश फ़लक की दिखे है सतह-ज़मीं, कहीं लगे कि ज़मीं से एक आस्मां गुम है; कहीं मलाल चमन को कि उड़ गए पंछी, कहीं गुलों को शिकायत कि बाग़बां गुम हैं; रखेगी याद ये दुनिया यहाँ बस इतना ही, वहाँ वो कितना मुक़म्मल है, जो जहाँ गुम है; बढ़ा हुआ सा लगे दायरा ये खोने का, यह न पूछ किसी से कि वो कहाँ गुम है। |
ख्वाहिशें हैं कि तेरे दिल मे उतर जाऊं, मुद्दतों बाद मैं हद से गुज़र जाऊं; कतारों में हैं मेरे कई चाहने वाले, तुम कहो तो मैं सब से मुकर जाऊं; तुम परेशान हो शायद मेरी हरकतों से, सोचता हूँ कि अब मैं सुधर जाऊं; जब भी तुम फूलों सा महकती हो, दिल करता है कि तुम्हे कुतर जाऊं; बहूत महीन हो गया है मेरा मुकद्दर, काश मैं फिर से उभर जाऊं। |