क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है; हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है! *ख़ाक-नशीनों: तपस्वी |
कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम; आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं! |
एक ऐसा भी वक़्त होता है; मुस्कुराहट भी आह होती है! |
दिल है क़दमों पर किसी के सिर झुका हो या न हो; बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो! |
दर्द-ओ-ग़म दिल की तबीयत बन गए; अब यहाँ आराम ही आराम है! |
हसीन तेरी आँखें हसीन तेरे आँसू; यहीं डूब जाने को जी चाहता है! |
इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का; क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम! |
इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा; आदमी काम का नहीं होता! |
या वो थे ख़फ़ा हम से, या हम हैं ख़फ़ा उन से; कल उन का ज़माना था, आज अपना ज़माना है! |
जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं; वही दुनिया बदलते जा रहे हैं! |