Mirza Ghalib Hindi Shayari

  • तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा;
    नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख!
    ~ Mirza Ghalib
  • हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन;</br>
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है!Upload to Facebook
    हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन;
    दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है!
    ~ Mirza Ghalib
  • क़ासिद के आते आते ख़त एक और लिख रखूँ;</br>
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में!Upload to Facebook
    क़ासिद के आते आते ख़त एक और लिख रखूँ;
    मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में!
    ~ Mirza Ghalib
  • कब वो सुनता है कहानी मेरी;</br>
और फिर वो भी ज़बानी मेरी!Upload to Facebook
    कब वो सुनता है कहानी मेरी;
    और फिर वो भी ज़बानी मेरी!
    ~ Mirza Ghalib
  • आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब,</br>
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक;</br>
ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र,</br>
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक!
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    आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब,
    दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक;
    ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र,
    सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक!
    ~ Mirza Ghalib, *सब्र-तलब: जिसमें सब्र और धैर्य की आवश्यकता हो
    *शब-ए-फ़ुर्क़त: जुदाई की रात
  • मैंने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब';</br>
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है!Upload to Facebook
    मैंने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब';
    मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है!
    ~ Mirza Ghalib
  • मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे;</br>
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे!Upload to Facebook
    मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे;
    तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे!
    ~ Mirza Ghalib
  • ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता;</br>
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता!Upload to Facebook
    ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता;
    अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता!
    ~ Mirza Ghalib
  • मरते हैं आरज़ू में मरने की;</br>
मौत आती है पर नहीं आती!Upload to Facebook
    मरते हैं आरज़ू में मरने की;
    मौत आती है पर नहीं आती!
    ~ Mirza Ghalib
  • मेरी क़िस्मत में ग़म अगर इतना था;</br>
दिल भी या-रब कई दिए होते!Upload to Facebook
    मेरी क़िस्मत में ग़म अगर इतना था;
    दिल भी या-रब कई दिए होते!
    ~ Mirza Ghalib