अपने चहरे के किसे दाग नज़र आते हैं; वक्त हर शख्स को आईना दिखा देता है! |
जस्ता जस्ता पढ़ लिया करना मज़ामीन-ए-वफ़ा, पर किताब-ए-इश्क़ का हर बाब मत देखा करो; इस तमाशे में उलट जाती हैं अक्सर कश्तियाँ, डूबने वालों को ज़ेर-ए-आब मत देखा करो; *जस्ता: उछला हुआ *बाब: द्वार *ज़ेर-ए-आब: पानी के नीचे *मज़ामीन-ए-वफ़ा: निरंतरता के विषय |
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं, 'फ़राज़' अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं; जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र, कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं! |
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं, सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं; सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से, सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं! |
चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का; सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही! |
क़ुर्बतें लाख ख़ूबसूरत हों; दूरियों में भी दिलकशी है अभी! |
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की, सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं; सुना है उस को भी है शेर-ओ-शायरी से शग़फ़, सो हम भी मोजिज़े अपने हुनर के देखते हैं! |
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ, क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ; तू भी हीरे से बन गया पत्थर, हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ! |
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं, सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं; सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से, सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं! *रब्त: लगाव *ख़राब-हालों: जिनकी हालत खराब है |
वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है; कि सारी बात मोहब्बत में रख-रखाव की थी! |