Ahmad Faraz Hindi Shayari

  • अपने चहरे के किसे दाग नज़र आते हैं;
    वक्त हर शख्स को आईना दिखा देता है!
    ~ Ahmad Faraz
  • जस्ता जस्ता पढ़ लिया करना मज़ामीन-ए-वफ़ा,<br />
पर किताब-ए-इश्क़ का हर बाब मत देखा करो;<br />
इस तमाशे में उलट जाती हैं अक्सर कश्तियाँ,<br />
डूबने वालों को ज़ेर-ए-आब मत देखा करो;<br /><br />
*जस्ता: उछला हुआ<br />
*बाब: द्वार<br />
*ज़ेर-ए-आब: पानी के नीचे<br />
*मज़ामीन-ए-वफ़ा: निरंतरता के विषयUpload to Facebook
    जस्ता जस्ता पढ़ लिया करना मज़ामीन-ए-वफ़ा,
    पर किताब-ए-इश्क़ का हर बाब मत देखा करो;
    इस तमाशे में उलट जाती हैं अक्सर कश्तियाँ,
    डूबने वालों को ज़ेर-ए-आब मत देखा करो;

    *जस्ता: उछला हुआ
    *बाब: द्वार
    *ज़ेर-ए-आब: पानी के नीचे
    *मज़ामीन-ए-वफ़ा: निरंतरता के विषय
    ~ Ahmad Faraz
  • अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं,</br>
'फ़राज़' अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं;</br>
जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र,</br>
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं!Upload to Facebook
    अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं,
    'फ़राज़' अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं;
    जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र,
    कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं!
    ~ Ahmad Faraz
  • सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं,</br>
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं;</br>
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से,</br>
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं!Upload to Facebook
    सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं,
    सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं;
    सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से,
    सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं!
    ~ Ahmad Faraz
  • चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का;
सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही!Upload to Facebook
    चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का; सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही!
    ~ Ahmad Faraz
  • क़ुर्बतें लाख ख़ूबसूरत हों;</br>
दूरियों में भी दिलकशी है अभी!Upload to Facebook
    क़ुर्बतें लाख ख़ूबसूरत हों;
    दूरियों में भी दिलकशी है अभी!
    ~ Ahmad Faraz, * क़ुर्बतें: नज़दीकियां
  • सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की,</br>
सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं;</br>
सुना है उस को भी है शेर-ओ-शायरी से शग़फ़,</br>
सो हम भी मोजिज़े अपने हुनर के देखते हैं!Upload to Facebook
    सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की,
    सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं;
    सुना है उस को भी है शेर-ओ-शायरी से शग़फ़,
    सो हम भी मोजिज़े अपने हुनर के देखते हैं!
    ~ Ahmad Faraz, *शग़फ़: रुचि
  • इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ,</br>
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ;</br>
तू भी हीरे से बन गया पत्थर,</br>
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ!Upload to Facebook
    इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ,
    क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ;
    तू भी हीरे से बन गया पत्थर,
    हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ!
    ~ Ahmad Faraz
  • सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं,</br>
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं;</br>
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से,</br>
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं!</br></br>
*रब्त: लगाव</br>
*ख़राब-हालों: जिनकी हालत खराब हैUpload to Facebook
    सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं,
    सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं;
    सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से,
    सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं!

    *रब्त: लगाव
    *ख़राब-हालों: जिनकी हालत खराब है
    ~ Ahmad Faraz
  • वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है;</br>
कि सारी बात मोहब्बत में रख-रखाव की थी!Upload to Facebook
    वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है;
    कि सारी बात मोहब्बत में रख-रखाव की थी!
    ~ Ahmad Faraz